Thursday, March 10, 2016

जीवन के तीस साल .........


        आज उम्र के तीस साल पुरे होने पर जब पीछे मुड़ कर देखती हूँ तो काफी उतार चढ़ाव वाला जीवन पाती हूँ। लेकिन उसके बीच पाती हूँ अपनी शर्तों, सिद्धांतों और आदर्शों के आधार पर जिया गया जीवन, इसीलिए आज उससे सतुंष्ट हूँ। क्योंकि जीवन समाज के आडम्बरों और दकयानूसी का गुलाम नहीं था इसिलए काफी संघर्श पूर्ण और कठिन भी रहा। बल्कि देखा जाये तो समाज और व्य्वस्था के खिलाफ इसी संघर्ष से न केवल सम्मानजनक जीवन जीना सीखा बल्कि जीवन का मूल्य भी सीखा।

      लगभग आज़ाद पंछी की तरह ही जीवन जिया। खेतों -खलिहानों से लेकर नदियों, झरनों,पहाड़ों और जंगलों का खूब भ्रमण किया और देश भर की प्राकृतिक विविधता का खूब रसपान किया। प्रकृति के इस अद्भुत और अंतहीन सौंदर्य को देखकर मुझे लगा की ये दुनिया बहुत ही सुन्दर है। इस असीम सौंदर्य ने ही मेरे अंदर पवित्र विचारों का उदय किया और मुझे जीवन अधिकाधिक मूल्यवान और सजीव नज़र आने लगा। और शायद इसिलए मैं अपने कठिन भविष्य का सामना जीवन से बिना कोई शियाकत किये कर पायी।

       जीवन में कुछ मोड़ बहुत ही आघात देने वाले भी आये। देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान भयंकर शोषण के चलते छोड़ देने पड़े। बहुत दुखद लगा लेकिन जीवन से कोई शियाकत नहीं हुई। बल्कि मुझे लगा की केवल डिग्री लेने के लिए मैं अपने जीवन को धूल में मिलाकर अपनी आत्मा के विकास को नहीं रोक सकती।

      जीवन का कुछ समय बहुत ही भयंकर बीमारी का भी गुजरा, जब ज़िंदा रहने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन जीवन के प्रति लालसा फिर भी कम नहीं हुई। बल्कि जीवन को सुन्दर और सार्थक बनाने का लगातार संघर्ष जारी रहा। और शायद इसीलिए अब तक के जीवन से न केवल संतुष्ट हूँ बल्कि आनंदित भी हूँ

    पिछला कुछ समय हालांकि बहुत उथल पुथल भरा रहा। हर शाम दिन के लम्हों का गुणाभाग करने में और अगले दिन शायद कुछ बेहतर पाने की उम्मीद साथ आती और हर सुबह जीवन की जटिलता का नया रूप लेकर आती। जिससे काफी हताशा और निराशा भी हुई लेकिन जीवन का क्रम फिर भी चलता रहा। और इसी क्रम में कुछ अतिवादी और प्रितिक्रियावादी लोगों के 'चंगुल' से भी आज़ादी मिली। और अब इस निष्कर्ष पर पहुंची हूँ की दुःख और उल्लास तो जीवन में आते ही रहते हैं लेकिन जीवन की सार्थकता तभी है जब हम दुःख को ही जीवन का अंतिम सत्य न मानकर विपरीत परस्थिति में भी हौसले के साथ जीवन की सुंदरता के लिए लड़ते हैं। प्रेमचंद का ये कथन मुझे बहुत ही सार्थक लगता है। '' जीवन केवल वर्षों का योग नहीं होता बल्कि आनंदमय और उल्लासपूर्ण क्षणों का ही योग  है।''