Monday, December 1, 2014

आधुनिक युग का 'प्रगतिशील' साहित्य



       कुछ समय पहले मैंने NBT द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित पुस्तक मेले से पेंगुइन पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित 'प्रगतिशील' लेखिका जयंती रंगनाथन द्वारा लिखित 'औरतें रोती नहीं' नामक पुस्तक खरीदी। मैंने कभी भी जयंती रंगनाथन को पढ़ा नहीं था, सो किताब का शीर्षक देखकर मैंने उसे खरीद लिया। अब जब समय मिला तो उसे को पढ़ा। इस किताब को पढ़कर मन जितना क्षुब्द हुआ और घृणा से भर गया है, उसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। किताब को लगभग आधी ही पढने के बाद मैंने फाड़कर जला दिया और मन हुआ की जी भर के कै करुँ जिससे जो कुछ पढ़ा है उसे बाहर निकल सकूँ। मैंने जीवन में शायद ही कभी किसी किताब का इतना अपमान किया होगा लेकिन इसे अपने संग्रह में रखना मेरे लिए सम्भव नहीं था। मुझे अभी तक ये मालूम था कि सड़क किनारे बिकने वाला सस्ता सहित्य ही अश्लील होता है। इतने बड़े पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशितऔर इतने बड़े पुस्तक मेले से खरीदा गया साहित्य गन्दगी का नंगा रूप हो सकता है, मुझे मालूम नहीं था।

           पिछले कुछ समय में मैंने कुछ 'प्रगतिशील' लेखिकाओं के ब्लॉग भी पढ़े। जिसमे उन्होंने समाज की नंगी कामुकता का चित्रण कर अपने 'खुलेपन' और 'प्रगतिशीलता' का परिचय है। कुत्सित मनोवृत्ति, पशुवृत्ति को चटकारे लेकर लिखना कैसी प्रगतिशीलता है ? समाज जो आज सड़ रहा है, गल रहा है उसकी गन्दगी और सड़ाँध का पाठको को 'आनंद' प्रदान करने के लिए जीवंत वर्णन प्रगतिशीलता नहीं,अश्लीलता है। अगर ईमानदारी से कुत्सित, घ्रडित और वीभत्स जीवन के बारे में लिखना है तो गोर्की से सीखो, जिसने उस दुर्गन्ध पूर्ण जीवन का मार्मिक चित्रण कर पाठको के मन में उसके प्रति घृणा पैदा करने की कोशिश की है ना की 'आनंद' देने की। 
        
      मन्नू भंडारी और अमृता प्रीतम के बाद के 'आधुनिक प्रगतिशील' लेखकों में मैंने शायद ही किसी को पढ़ा होगा। लेकिन अब आकर जिन्हे पढ़ा उनकी 'प्रगतिशील' लेखनी को सड़ा ,गला और दुर्गन्ध पूर्ण पाया। लगता है इस दुर्गन्ध पूर्ण समाज की प्रगतिशीलता भी दुर्गन्ध पूर्ण हो गयी है।

Wednesday, August 6, 2014

महामारी का शिकार

यह सन 2010 की बात है जब दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन किया गया था. खेलों का आयोजन करने के लिए दिल्ली के सौंदर्यीकरण के नाम पर पूरी दिल्ली को खोद डाला गया था. बड़े-बड़े गड्ढे खोदकर बरसात के मौसम में ऐसे ही छोड़ दिए गए थे. जिनमें पानी भरकर डेंगू के मच्छर जमकर पैदा हुए और 2010 के अगस्त व सितंबर के महीने में डेंगू दिल्ली में एक महामारी बन गया. दिल्ली व एनसीआर रीजन में हजारों लोग इस महामारी की चपेट में आ गए और सैकड़ों लोग बिना काल मौत के मुंह में समा गए. उस साल डेंगू की चपेट में आने वाले लोगों में से मैं भी एक थी.
उस समय दिल्ली में जेएनयू में रिसर्च करती थी. अगस्त महीने की एक रात को सही सलामत सोई और सुबह जब उठी तो भयंकर बदन दर्द व तेज बुखार था. बुखार की कुछ दवाइयां मेरे पास रखी हुई थी वह ले ली, लेकिन थोड़ी देर कम रहने के बाद बुखार फिर से तेज हो जाता. पूरा दिन यही क्रम चलता रहा. अगले दिन जब मैने अपने साथियों को बुखार के बारे में बताया तो उन्हें बड़ी चिंता हुई और उन्हें लगा कि कहीं मुझे डेंगू तो नहीं हो गया. तो उन्होंने मुझे दिल्ली के किसी अस्पताल में भर्ती करने की कोशिश की. एम्स, सफदरजंग जैसे बड़े अस्पतालों सहित कई अस्पतालों के धक्के खाने के बाद आखिर वह लोग बङी मुश्किल से मुझे कलावती अस्पताल में भर्ती करने में कामयाब हुए. क्योंकि किसी भी हॉस्पिटल में बेड खाली नहीं था इसलिए कोई भी हॉस्पिटल एडमिट करने के लिए तैयार नहीं था. कलावती पहुंचने पर जब ब्लड टेस्ट हुआ तो प्लेटलेट काउंट 100000 के नीचे आया. डेंगू सस्पेक्ट किया गया इसलिए मुझे भर्ती कर लिया गया. जिस बेड पर मुझे भर्ती किया गया उस पर पहले से ही डेंगू का एक और पेशेंट था. पूरा वार्ड डेंगू पेशेंट से भरा हुआ था और हर बेड पर दो और कुछ पर तीन पेशेंट तक भर्ती थे. खौफनाक मंजर था. भर्ती होने के कुछ घंटे बाद ही मेरे बराबर वाले बेड पर जो एक लगभग 10 साल उम्र का बच्चा भर्ती था, ने डेंगू से दम तोड़ दिया. पूरे हॉस्पिटल का यही हाल था हर घंटे पर कोई ना कोई डेंगू का मरीज दम तोड़ देता था. दिनभर चारों तरफ से हाहाकार, चीत्कार की आवाजें आती रहती.
अगले दिन ही मेरा प्लेटलेट काउंट 100000 से घटकर 40000 पर आ गया. तब मैंने अपने घरवालों को इनफॉर्म किया और वह तुरंत ही बिना विलंब किए दिल्ली पहुंच गए. अब स्थिति यह थी कि हर घंटे पर प्लेटलेट काउंट किया जाता था और वह हर बार ही पहले से कुछ घट कर आता था.
पूरे वार्ड में ऐसी स्थिति में भी कोई सीनियर डॉक्टर नहीं था. पूरे वार्ड को जूनियर रेजिडेंट के भरोसे छोड़ा दिया गया था. मरीजों के तीमारदार पूरा दिन डॉक्टरों के आगे पीछे हाथ जोड़े घूमते रहते कि साहब हमारे मरीज को बचा लो लेकिन मरीजों की तुलना में डॉक्टर इतने कम थे कि वह किसी भी मरीज को सही से ध्यान नहीं दे पाते थे. मुझे भर्ती हुए 3 दिन हो चुके थे और मैं अपने वार्ड में अगल-बगल के बेड से 1 या 2 मरीजों की रोजाना मौत होते हुए देख रही थी. और मुझे बिल्कुल लगने लगा था कि मेरी बारी भी जल्दी ही आने वाली है.
भर्ती होने के चौथे दिन मेरे मसूड़ों नाक व आंखों से खून आना शुरू हो गया. और बेहोशी आनी शुरू हो गई. प्लेटलेट 20000 तक पहुंच चुकी थी. शाम होते-होते स्थिति बेइंतहा खराब हो गई और प्लेटलेट घटकर 5000 पहुंच गइ. पूरी दिल्ली में ढूंढने से भी कहीं ब्लड नहीं मिला जिससे कि मुझे प्लेटलेट चलाया जा सके. मेरे घर वाले भी बदहवास स्थिति में पहुंच चुके थे. ऊपर से डॉक्टरों ने उस समय उनके साथ जो व्यवहार किया उसे वह आज तक नहीं भुला पाए हैं. मैं कुछ बेहोशी की स्थिति में थे लेकिन फिर भी मुझे कुछ आवाज आ रही थी. डॉ मेरे पापा को धमका रहा था कि आपका मरीज नहीं बचेगा इसलिए इसे यहां से ले जाओ हम इसके मरने तक इंतजार नहीं कर सकते क्योंकि हमें यह बेङ किसी दूसरे मरीज को देना है. और मेरे पापा डॉक्टर के आगे गिड़गिड़ा रहे थे कि मेरी बच्ची को बचा लो. मेरे एक साथी के परिचित कलावती हॉस्पिटल में लैब टेक्नीशियन थे. उसने उन परिचित के माध्यम से डॉक्टर को मुझे हॉस्पिटल में ही एडमिट रहने देने पर मजबूर किया. डॉक्टर तो क्या मेरे घर वालों ने भी मेरा जिंदा बचने की उम्मीद छोड़ दी थी. मैं तो बेहोश थी, मेरे घर वालों के लिए वह रात बड़े संकट की रात थी.
लेकिन अगले दिन सुबह मानो जैसे कोई बङा चमत्कार हुआ हो. प्लेटलेट काउंट अपने आप ही 5000 से बढ़कर 7000 पर आ गया. और शाम होते-होते 12000 पर आ गया. और अगले दिन 50000 पर आ गया. इस तरह मेैं जिंदा बच गई.
डेंगू हर साल बरसात के मौसम में भारत जैसे पिछड़े देशों में कहर बरपाता है, लेकिन इसकी आज तक भी कोई दवाई मार्केट में उपलब्ध नहीं है. क्योंकि एक तो यह वैसे ही पिछड़े देशों की बीमारी है दूसरा यह उन लोगों को अपना शिकार बनाती है जो कि मच्छरों द्वारा कटने के लिए आसानी से उपलब्ध हों. क्योंकि इस तबके से फार्मा कंपनी को बड़ा मुनाफा नहीं होगा इसलिए डेंगू की दवाई भी नहीं है. जिस व्यक्ति को डेंगू होता है वह मेरी ही तरह किसी चमत्कार के भरोसे ही जीवित बच पाता है.
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Tuesday, June 10, 2014

वो बहनें, जो अब नहीं रहीं




जो न जानती थीं, हत्या व बलात्कार का मतलब
जिन्होंने न देखे थे पुलिस और थाने
जो पढ़ती थीं स्कूल में और छीलती थीं लहसुन खेत में
आज वो पोस्टमार्टम और फॉरेंसिक जाँच का विषय बन गयी  हैं

वो टहनियाँ जिनसे टपकती थीं पकी-पकी आमियां
झूलती थीं जिन पर वो तीजो के झूले डालकर
वो चुन्नियाँ जो लहराती थीं उनके गले में
आज वो फाँसी की रस्सियाँ बन गयीं हैं

वो अंगूठियां और कड़े जो पहनती थीं हाथ में
वो किताबे और कापियां जिनमे थे कहानी और किस्से
वो खूटियां टंगे है जिन पर उनके नये-नये कपड़े
आज वो जीता जागता इतिहास बन गये  हैं

वो गलियाँ, वो कुएं जहाँ  होती थीं सहेलियों से बातें
वो रास्ते , वो छते जहाँ से देखतीं थीं वो बारातें
वो घर, वो आँगन जहाँ गूंजती थीं उनकी आवाजें
आज वो पुलिस और नेताओं के पर्यटन बन गये हैं

वो वहशी, वो दरिंदे जिन्हे मिली थीं इंसानी जिंदगियां
जिनके लिए अब जीवन का सबब है जेले और काल कोठरियाँ
मगर जिनकी फिक्रमंद है ये राजनीति और सियासत
वो इंसानियत को रौंदकर फांसी के असली हक़दार बन गये हैं

Friday, May 9, 2014

एक वो सुबह



एक सुबह वो आएगी
जब इस दुनिया से
 दौलत की हुकूमत जाएगी
और मेहनत की हुकूमत आएगी
तब दुनिया की मेहनतकश जनता
एक नया सवेरा पायेगी
भौगोलिक सीमाओं में बंधी ये दुनिया
तब एक ही देश बन जाएगी
बिन पुलिस और जेलों के
उस दुनिया की सरकार चलायी जायगी
सब मालिक बन जायेंगे मजदूर कोई रहेगा
तब कोई अन्नदाता  आत्महत्या करके मरेगा
जीने के लिए दौलत जरुरी आवश्यकता होगी
इन्सान के खुशहाल जीवन की बस निश्चितता होगी
हिन्दू और मुस्लमान में बटा इन्सान रहेगा
इन्सान की तरह जीने के लिए बस एक सभ्य समाज रहेगा
फ़ौज तोप बम की जरुरत रह जाएगी
बारूद के ढेर पे बैठी ये दुनिया तब स्वर्ग से भी सुन्दर बन जाएगी 

Tuesday, May 6, 2014

सुन्दर समाज


अँधियारा जग से भाग जाये, जीवन उजियारा हो जाये
आओ मिलकर संघर्ष करें , सुन्दर एक समाज बनायें

भूखा न जहाँ किसी माँ का बच्चा सोये
सड़कों पे जहाँ लावारिश बचपन न रोये

जहाँ जिस्म बेचकर कोई औरत रोटी न कमाये
जहाँ मेहनत की कमाई को सरमायेदार न खाए

ठण्ड से, भूख से जहाँ कोई इंसान न मरे
दौलत के लिए जहाँ भाई भाई का क़त्ल न करे

जहाँ दस्तूर पुराने सदियों के इंसा पर न लादे जाये
जहाँ हया के नाम पे औरत को न मारा जाये

जहाँ प्रेम पर न समाज का पहरा  हो
जहाँ मानव का मानव से रिश्ता गहरा हो

चारों  और बस पात हरे हो, फूल खिले हो
और इन्सान के जीवन में आयी खुशहाली हो