Monday, November 23, 2020

जीवन की एक सुन्दर स्मृति


   



















    ये किसी वेबसाइट से चुराई गयी फोटो नहीं है बल्कि अब से लगभग चार साल पहले गांव में घर पर हमारे द्वारा बनाये गए बगीचे में खिले हुए फूल हैं, जिनकी फोटो आज मुझे अचानक से अपने लैपटॉप में मिली तो इस बगीचे और इन फूलो से जुडी बहुत सारी बाते भी याद आ गयी। यूँ तो मुझे बच्चे, पेंटिंग्स, संगीत, कला, पेड़, पौधे, फूल, पत्ते, हरियाली, पशु, पक्षी यह सभी बचपन से ही बहुत पसंद है,और मेरे जीवन का अहम हिस्सा भी रहे हैं। लेकिन अब से लगभग 5 साल पहले जब मुझे बच्चों के साथ रहने और पौधों और फूलों को खुद से रोपने और सींचने का मौका मिला तब मुझे उनके असली सौंदर्य का पता चला। 

      उस समय मैं एकमात्र क्रांतिकारियों के भयंकर मानसिक शोषण से मुक्त होकर अपने गांव में रह रही थी तब मैंने गांव के आर्थिक रूप से कमज़ोर पृष्भूमि के छोटे बच्चो को फ्री कोचिंग देनी शुरू की। शुरुआत दो बच्चो से हुई लेकिन थोड़े ही दिनों में बीस बच्चे हो गए। मेरी उस फ्री कोचिंग के बदले वे बच्चे मुझे जितना प्रेम देते थे, उसके सामने मेरी द्वारा उन्हें दी जाने वाली कोचिंग बहुत तुच्छ थी। बच्चे जब भी पढ़ने आते तो अपने घर से मेरे लिए खाने के लिए कुछ न कुछ आइटम जरूर लेकर आते। सिर्फ इतना ही नहीं धीरे धीरे वे शाम को भी मेरे लिए कुछ स्पेशल खाना अपनी माँ से बनवाकर पंहुचा कर जाते। और फिर हर दिन आपस में लड़ते कि दीदी का आज शाम का खाना हम अपने घर से लेकर आएंगे। और इस तरह हर रोज शाम का खाना मेरे लिए किसी न किसी बच्चे के घर से आने लगा। मेरे बहुत मना करने पर भी वो खाना जरूर पंहुचा कर जाते। जिस खाने में इतना प्यार छिपा होता वो मुझे दुनिया सारे लज़ीज़ व्यंजनो से भी स्वादिष्ठ लगता। 

      कुछ दिनों के बाद वे खाना देने रोजाना शाम को टोली बनाकर आने लगे। ये सिलसिला लगातार चलता रहा और फिर वो शाम को देर से आने लगे और देर रात को जाने लगे। रात को देर रात तक मेरे साथ मेरे बिस्तर में बैठ जाते और फिर धीरे धीरे देर रात तक जमनी वाली इस महफ़िल में कहानी,चुटकुले,गीतों का सिलसिला जारी हो गया। और इसमें उनके साथ साथ मुझे भी बहुत आनंद लगा। लेकिन  क्योकि उन्हें अपने घर के भी ढेर सारे काम करने होते थे तो  शाम के समय मेरे पास आने पर उनकी मम्मियां उन्हें डांटने लगी फिर उन्होंने अपने हिस्से के सारे काम दिन में ही निपटाने शुरू कर दिए, क्योकि उन्हें हर हाल में शाम की महफ़िल में जो शामिल होना था। लेकिन स्कूल से बाद के समय में वो अपने शाम के घरेलू काम निपटाते तो फिर मेरे पास पढ़ने आने का समय नहीं मिल पता था। और सुबह को स्कूल जाने से पहले उन्हें अपनी माओं के साथ खेत से  पशुओं के लिए चारा लाना होता था। इसलिए उन्होंने मेरे पास पढ़ने आने और शाम की महफ़िल में शामिल होने के लिए दिन के काम भी सुबह जल्दी उठकर निपटाने शुरू कर दिए। और इस तरह हमारी महफ़िल जारी रही लेकिन फिर रात की महफ़िल पर मेरे घरवालों ने आपत्ति उठानी शुरू कर दी क्योकि सर्दियाँ शुरू हो गयी थी और हमारी महफ़िल शाम को जब एक बार शरू होती तो फिर रात को दस ग्यारह बजे तक चलती रहती। क्योकि घर का फाटक बच्चो के वापस जाने तक खुला रहता और उनके जाने के बाद देर रात को बंद करना पड़ता। तो घरवालों के कहने पर मैंने बच्चो से रात को आने के लिए जब मन किया तो उनके चेहरे लटक गए क्योकि रात की महफ़िल में बेइंतहा आनद जो आने लगा था। फिर बोले दीदी यहाँ आने की वजह से ही तो हम इतनी ठण्ड में भी सुबह जल्दी जागकर अपने घरेलू काम निपटाते हैं. कोई बात नहीं फाटक बंद हो जाने दो लेकिन हम जरूर आएंगे। फिर उन्होंने ही उसका रास्ता निकाला।  फाटक बंद होने पर वो दीवार कूदकर आने लगे और देर रात को दीवार कूदकर ही जाते। हमारा ये पढ़ने पढ़ाने का सिलसिला जारी रहा और रात की महफिले भी जारी रही। और इनमे हमें बेशुमार आनद आने लगा। धीरे धीरे बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी और इस तरह एक पूरा बड़ा समूह बन गया। कुछ समय बाद बच्चो को एक आईडिया सुझा कि क्यों न हम सब लोग मिलकर एक सुन्दर बगीचा बना ले फिर उसी में बैठकर पढ़ा करेंगे। उस दिन के बाद घर के पीछे खाली पड़ी काफी जमीन को हमने फावड़े से खोदना और समतल करना शुरू कर दिया और दो महीनो के अंदर ही उसे हमने एक छोटा खेत बनाकर अनेक तरह के फूलों के पोधो से पाट दिया। और फिर अगला बसंत आते आते पूरी बगिया फूलों से खिल उठी। ये फूल उसी बगिया के हैं। उस फूलों से लदी बगिया में बैठकर पढ़ना पढ़ाना जीवन के सुन्दरतम अनुभवों में से एक साबित हुआ। 

   पढ़ने पढ़ाने का ये सिलसिला लगभग दो वर्षों तक चलता रहा। उसके बाद जब मैंने शादी करने का निर्णय किया तो मेरे प्यारे बच्चों के चेहरे मुरझा गए। दीदी अब हमें कौन पढ़ायेगा? कितना कुछ सीखा हमने इन दो सालों में, अब कौन सिखाएगा। खैर वो सारे बच्चे मेरी शादी में आये और इतने सुन्दर तोहफे मेरे लिए लाये जो कि मेरे लिए शादी में आये बाकी सारे तोहफों से बहुमूल्य थे। 

    उन बच्चो के द्वारा दिए गए निस्वार्थ प्रेम को याद करके आज भी मेरी आँखों में हर्ष के आंसू आ जाते हैं। आज भी जब भी घर जाती हूँ तो मेरे आने का पता लगते ही तुरंत सारे के सारे मुझसे मिलने चले आते हैं। अब बड़े हो गए है और बड़ी क्लास में भी पहुंच गए हैं, लेकिन मासूमियत और चंचलता के मामले में अभी भी वही छोटे बच्चे हैं। मुझे देखते ही तुरंत मुझसे लिपट जाते हैं, मानो कोई बहुत समय पहले बिछड़ा प्रेमी मिल गया हो। मुझसे कहते है कि दीदी ये आपकी पढाई हुई पढाई का ही नतीजा है की हम शराब से बहुत दूर हैं नहीं तो गांव के बाकि बच्चे जो कि उनकी उम्र के है आज सब शराब पीते हैं। और कहते हैं कि जो समय उन्होंने मेरे साथ गुजरा वह बहुत अच्छा समय था। 

   उन बच्चों के साथ गुजरा वो समय और उनसे मिला निश्छल प्रेम मेरे जीवन की सबसे सुन्दर स्मृतियों में से एक है। 

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