पक्षियों के लिए सुबह का होना किसी खूबसूरत घटना के होने से कम नहीं होता। वे सुबह होने का जश्न बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में अलग अलग आवाजों में कलरव गान करके मनाते है. 5:00 बजे के बाद उन्हें सोना बिलकुल स्वीकार नहीं होता है,और वे चाहते है कि समस्त मानव जाति भी उनके जश्न में शामिल हो जाये शायद इसीलिए वे इतनी तेज आवाज में सुबह होने पर कलरव गान करते हैं. जब से हम लोग इस खूबसूरत कैम्पस में आये है, तो यहाँ पक्षियों खासतौर पर मोरों के साथ रहने व उन्हें नज़दीक से जानने का बड़ा ही सुनहरा मौका मिला. मोर सुबह 5 बजे अपना पीहू पीहू का गान शुरू कर देते हैं, फिर उसके बाद वे मॉर्निंग वॉक पर झुंड के झुंड बनाकर निकल जाते हैं. उनकी मॉर्निंग वॉक के रास्ते में जो भी दीवार, पोल, पेङ या फिर पिलर आता है, वह सब के ऊपर चढ़ जाते हैं और उन पर बैठकर इठला इठलाकर कलरव गान करते हुए और झूम-झूम कर नाचते हुए कतारों में आगे बढ़ते जाते हैं. उनके इस उत्सव को देखकर लगता है कि सुबह का होना उनके लिए कितना खास होता है. उनके इस उत्सव व जश्न को देखकर मुझे लगने लगा है कि हम मनुष्य खाने कमाने की भाग दौड़ में कितने मनोरंजन-हीन हो गए हैं जिनके लिए सुबह का होना कोई महत्तव नहीं रखता.
इन मोरो को देखकर अब मैंने भी सुबह होने का जश्न मनाना सीख लिया है. इन्हे देखकर मेरा मन होता है कि काश मेरे भी पंख उग आयें और मैं भी ऐसे ही झूम-झूम कर नाचते हुए मॉर्निंग वॉक पर जाऊं.आज सुबह जैसे ही आंख खुली और दरवाजा खोल कर बाहर देखा, तो पता चला कि प्रकृति का असीम सौंदर्य सामने हिलोरे ले रहा है .पक्षी अपना कलरव गान कर रहे थे, मोर अपना नृत्य गान कर रहे थे, दूब के पत्ते ओस की बूंदों से सर नवाए हुए थे और मंद मंद ठंडी ठंडी हवा की बयार चल रही थी, आकाश में बादलों का तान तना हुआ था. प्रकृति के इस उत्सव में शामिल होने के लिए मैं भी तुरंत घर से बाहर आ गयी और गुदगुदे घास के मैदान पर, जो कि ओस से लबालब भरे हुए थे , पर नंगे पैर मोरो के नृत्य में शामिल हो गयी. ये अनुभव बहुत रोमांचित कर देने वाला था. घास के मैदानों में ओस इतनी अधिक थी कि मन कर रहा था कि इन घास के नरम व मुलायम बिछोनों पर लेट जाऊं और सारी ओस को अपने पर लपेट लूं.
उसके थोड़ी देर बाद ही झमाझम बारिश शुरू हो गयी और मै घर के अंदर आ गयी। ठंडी हवा की बयार और गीली मिट्टी की भीनी भीनी मंद मंद सुगंध घर के दरवाजे से अंदर आने लगी, ऐसे खूबसूरत मौसम को देखकर मैने महान साहित्यकार चेखव के महान प्रेम की कहानी को पढना शुरू कर दिया. जिसे पढ़ने के बाद बहुत ही शानदार अनुभूति हुई. उसी समय मुझे महान कलाकार वांग गोग का वो उद्धरण याद आया जिसमे उन्होंने कहा था कि यदि तुम्हारे पास प्रकृति ,कला, कविता और प्रेम है और अगर वह तुम्हारे जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है, तो फिर क्या पर्याप्त होगा? वास्तव में प्रकृति, कला और साहित्य ही हमें दुनिया की सबसे खूबसूरत और रोमाँचक अनुभूति दे सकते है. और जिस इंसान ने अपने जीवन में इनका रसपान नहीं किया वो दुनिया का सबसे बड़ा दरिद्र है।
आज इस पूंजीवादी व्यवस्था में जीवन जिस तरह से जिंदा रहने की जद्दोजहद में जुट जाना मात्र रह गया है, वहां कला प्रकृति और कविता के लिए तो मनुष्य के पास समय ही नहीं रह गया है. खासतौर पर मध्यवर्गीय समाज तो आज सिर्फ पैसा कमाने की मशीन भर बनकर रह गया है. प्रेम और प्रकृति शब्द तो मानो उनके जीवन से विलुप्त ही हो गया है. सुबह घर से काम के लिए ऑफिस निकल जाना और शाम को लौट कर घर आ जाना बस यही मानो उनका जीवन रह गया है. घर उनके लिए विश्राम करने और खाना खाने का एक स्थान मात्र बन कर रह गया है. जीवन का असल स्वाद उन्होंने चखा ही नहीं. खाने की भाग दौड़ में लिपटे नीरस और उबाऊ जीवन को ही वे असल में जीवन मान बैठते हैं. वे नहीं जानते कि जीवन की आशाओं, उमंगो और आरजूओं का नाम ही असल में जिंदगी होता है
Many lives come and go but the ethoes of some of them remain,to touch our souls in unforseen ways. Lives of these heroes speak to our hearts and give us strength for finding the inspiration within ourselves to write the story of our own life.
Wednesday, June 3, 2020
जिंदगी
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