Tuesday, November 24, 2020

इरादे


मुश्किलें तो केवल इंसान के इरादे आज़माती हैं, 

लेकिन वे स्वप्न के पर्दे भी निगाहों से हटाती हैं। 


सफर में अगर मुश्किलें आएं तो हिम्मत और बढ़ती है ,

कोई अगर रास्ता रोके तो जुर्रत और बढ़ती है। 


आँधियों को ज़िद है जहाँ बिजलियाँ गिराने की,

मुझे भी ज़िद है वहीँ आशियाँ बनाने की। 


हिम्मत और हौसलें बुलंद हैं मेरे, मैं थकी नहीं हूँ,

जंग अभी बाकी है और मैं हारी भी नहीं हूँ। 


अभी न पूछो मुझसे मेरी मंजिल कहाँ है,

अभी तो मैंने चलना शुरू किया है और बाकी  सारा जहाँ है। 

Monday, November 23, 2020

जीवन की एक सुन्दर स्मृति


   



















    ये किसी वेबसाइट से चुराई गयी फोटो नहीं है बल्कि अब से लगभग चार साल पहले गांव में घर पर हमारे द्वारा बनाये गए बगीचे में खिले हुए फूल हैं, जिनकी फोटो आज मुझे अचानक से अपने लैपटॉप में मिली तो इस बगीचे और इन फूलो से जुडी बहुत सारी बाते भी याद आ गयी। यूँ तो मुझे बच्चे, पेंटिंग्स, संगीत, कला, पेड़, पौधे, फूल, पत्ते, हरियाली, पशु, पक्षी यह सभी बचपन से ही बहुत पसंद है,और मेरे जीवन का अहम हिस्सा भी रहे हैं। लेकिन अब से लगभग 5 साल पहले जब मुझे बच्चों के साथ रहने और पौधों और फूलों को खुद से रोपने और सींचने का मौका मिला तब मुझे उनके असली सौंदर्य का पता चला। 

      उस समय मैं एकमात्र क्रांतिकारियों के भयंकर मानसिक शोषण से मुक्त होकर अपने गांव में रह रही थी तब मैंने गांव के आर्थिक रूप से कमज़ोर पृष्भूमि के छोटे बच्चो को फ्री कोचिंग देनी शुरू की। शुरुआत दो बच्चो से हुई लेकिन थोड़े ही दिनों में बीस बच्चे हो गए। मेरी उस फ्री कोचिंग के बदले वे बच्चे मुझे जितना प्रेम देते थे, उसके सामने मेरी द्वारा उन्हें दी जाने वाली कोचिंग बहुत तुच्छ थी। बच्चे जब भी पढ़ने आते तो अपने घर से मेरे लिए खाने के लिए कुछ न कुछ आइटम जरूर लेकर आते। सिर्फ इतना ही नहीं धीरे धीरे वे शाम को भी मेरे लिए कुछ स्पेशल खाना अपनी माँ से बनवाकर पंहुचा कर जाते। और फिर हर दिन आपस में लड़ते कि दीदी का आज शाम का खाना हम अपने घर से लेकर आएंगे। और इस तरह हर रोज शाम का खाना मेरे लिए किसी न किसी बच्चे के घर से आने लगा। मेरे बहुत मना करने पर भी वो खाना जरूर पंहुचा कर जाते। जिस खाने में इतना प्यार छिपा होता वो मुझे दुनिया सारे लज़ीज़ व्यंजनो से भी स्वादिष्ठ लगता। 

      कुछ दिनों के बाद वे खाना देने रोजाना शाम को टोली बनाकर आने लगे। ये सिलसिला लगातार चलता रहा और फिर वो शाम को देर से आने लगे और देर रात को जाने लगे। रात को देर रात तक मेरे साथ मेरे बिस्तर में बैठ जाते और फिर धीरे धीरे देर रात तक जमनी वाली इस महफ़िल में कहानी,चुटकुले,गीतों का सिलसिला जारी हो गया। और इसमें उनके साथ साथ मुझे भी बहुत आनंद लगा। लेकिन  क्योकि उन्हें अपने घर के भी ढेर सारे काम करने होते थे तो  शाम के समय मेरे पास आने पर उनकी मम्मियां उन्हें डांटने लगी फिर उन्होंने अपने हिस्से के सारे काम दिन में ही निपटाने शुरू कर दिए, क्योकि उन्हें हर हाल में शाम की महफ़िल में जो शामिल होना था। लेकिन स्कूल से बाद के समय में वो अपने शाम के घरेलू काम निपटाते तो फिर मेरे पास पढ़ने आने का समय नहीं मिल पता था। और सुबह को स्कूल जाने से पहले उन्हें अपनी माओं के साथ खेत से  पशुओं के लिए चारा लाना होता था। इसलिए उन्होंने मेरे पास पढ़ने आने और शाम की महफ़िल में शामिल होने के लिए दिन के काम भी सुबह जल्दी उठकर निपटाने शुरू कर दिए। और इस तरह हमारी महफ़िल जारी रही लेकिन फिर रात की महफ़िल पर मेरे घरवालों ने आपत्ति उठानी शुरू कर दी क्योकि सर्दियाँ शुरू हो गयी थी और हमारी महफ़िल शाम को जब एक बार शरू होती तो फिर रात को दस ग्यारह बजे तक चलती रहती। क्योकि घर का फाटक बच्चो के वापस जाने तक खुला रहता और उनके जाने के बाद देर रात को बंद करना पड़ता। तो घरवालों के कहने पर मैंने बच्चो से रात को आने के लिए जब मन किया तो उनके चेहरे लटक गए क्योकि रात की महफ़िल में बेइंतहा आनद जो आने लगा था। फिर बोले दीदी यहाँ आने की वजह से ही तो हम इतनी ठण्ड में भी सुबह जल्दी जागकर अपने घरेलू काम निपटाते हैं. कोई बात नहीं फाटक बंद हो जाने दो लेकिन हम जरूर आएंगे। फिर उन्होंने ही उसका रास्ता निकाला।  फाटक बंद होने पर वो दीवार कूदकर आने लगे और देर रात को दीवार कूदकर ही जाते। हमारा ये पढ़ने पढ़ाने का सिलसिला जारी रहा और रात की महफिले भी जारी रही। और इनमे हमें बेशुमार आनद आने लगा। धीरे धीरे बच्चों की संख्या भी बढ़ने लगी और इस तरह एक पूरा बड़ा समूह बन गया। कुछ समय बाद बच्चो को एक आईडिया सुझा कि क्यों न हम सब लोग मिलकर एक सुन्दर बगीचा बना ले फिर उसी में बैठकर पढ़ा करेंगे। उस दिन के बाद घर के पीछे खाली पड़ी काफी जमीन को हमने फावड़े से खोदना और समतल करना शुरू कर दिया और दो महीनो के अंदर ही उसे हमने एक छोटा खेत बनाकर अनेक तरह के फूलों के पोधो से पाट दिया। और फिर अगला बसंत आते आते पूरी बगिया फूलों से खिल उठी। ये फूल उसी बगिया के हैं। उस फूलों से लदी बगिया में बैठकर पढ़ना पढ़ाना जीवन के सुन्दरतम अनुभवों में से एक साबित हुआ। 

   पढ़ने पढ़ाने का ये सिलसिला लगभग दो वर्षों तक चलता रहा। उसके बाद जब मैंने शादी करने का निर्णय किया तो मेरे प्यारे बच्चों के चेहरे मुरझा गए। दीदी अब हमें कौन पढ़ायेगा? कितना कुछ सीखा हमने इन दो सालों में, अब कौन सिखाएगा। खैर वो सारे बच्चे मेरी शादी में आये और इतने सुन्दर तोहफे मेरे लिए लाये जो कि मेरे लिए शादी में आये बाकी सारे तोहफों से बहुमूल्य थे। 

    उन बच्चो के द्वारा दिए गए निस्वार्थ प्रेम को याद करके आज भी मेरी आँखों में हर्ष के आंसू आ जाते हैं। आज भी जब भी घर जाती हूँ तो मेरे आने का पता लगते ही तुरंत सारे के सारे मुझसे मिलने चले आते हैं। अब बड़े हो गए है और बड़ी क्लास में भी पहुंच गए हैं, लेकिन मासूमियत और चंचलता के मामले में अभी भी वही छोटे बच्चे हैं। मुझे देखते ही तुरंत मुझसे लिपट जाते हैं, मानो कोई बहुत समय पहले बिछड़ा प्रेमी मिल गया हो। मुझसे कहते है कि दीदी ये आपकी पढाई हुई पढाई का ही नतीजा है की हम शराब से बहुत दूर हैं नहीं तो गांव के बाकि बच्चे जो कि उनकी उम्र के है आज सब शराब पीते हैं। और कहते हैं कि जो समय उन्होंने मेरे साथ गुजरा वह बहुत अच्छा समय था। 

   उन बच्चों के साथ गुजरा वो समय और उनसे मिला निश्छल प्रेम मेरे जीवन की सबसे सुन्दर स्मृतियों में से एक है। 

Wednesday, June 3, 2020

जिंदगी

     

       पक्षियों के लिए सुबह का होना किसी खूबसूरत घटना के होने से कम नहीं होता। वे सुबह होने का जश्न बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में अलग अलग आवाजों में  कलरव गान करके मनाते है. 5:00 बजे के बाद उन्हें सोना बिलकुल स्वीकार नहीं होता है,और वे चाहते है कि समस्त मानव जाति भी उनके जश्न में शामिल हो जाये शायद इसीलिए वे  इतनी तेज आवाज में सुबह होने पर कलरव गान करते हैं. जब से हम लोग इस खूबसूरत  कैम्पस में आये है, तो यहाँ पक्षियों खासतौर पर मोरों के साथ रहने व उन्हें नज़दीक से जानने का बड़ा ही सुनहरा मौका मिला. मोर सुबह 5  बजे अपना पीहू पीहू का गान शुरू कर देते हैं, फिर उसके बाद वे  मॉर्निंग वॉक पर झुंड के झुंड बनाकर निकल जाते हैं. उनकी मॉर्निंग वॉक के रास्ते में जो भी दीवार, पोल, पेङ या फिर पिलर आता है, वह सब के ऊपर चढ़ जाते हैं और उन पर बैठकर इठला इठलाकर कलरव गान करते हुए और झूम-झूम कर नाचते हुए कतारों में आगे बढ़ते जाते हैं. उनके इस उत्सव को देखकर लगता है कि सुबह का होना उनके लिए कितना खास होता है. उनके इस उत्सव व जश्न को देखकर मुझे लगने लगा है कि हम मनुष्य खाने कमाने की भाग दौड़ में कितने मनोरंजन-हीन हो गए हैं जिनके लिए सुबह का होना कोई महत्तव नहीं रखता. 
    इन मोरो को देखकर अब मैंने भी सुबह होने का जश्न मनाना सीख लिया है. इन्हे देखकर मेरा मन होता है कि काश मेरे भी पंख उग आयें और मैं भी ऐसे ही झूम-झूम कर नाचते हुए मॉर्निंग वॉक पर जाऊं.आज सुबह जैसे ही आंख खुली और दरवाजा खोल कर बाहर देखा, तो पता चला कि प्रकृति का असीम सौंदर्य सामने हिलोरे ले रहा है .पक्षी अपना कलरव गान कर रहे थे, मोर अपना नृत्य गान कर रहे थे, दूब के पत्ते ओस की बूंदों से सर नवाए हुए थे और मंद मंद ठंडी ठंडी हवा की बयार चल रही थी, आकाश में बादलों का तान तना हुआ था. प्रकृति के इस उत्सव में शामिल होने के लिए मैं भी तुरंत घर से बाहर आ गयी और गुदगुदे घास के मैदान पर, जो कि ओस से लबालब भरे हुए थे , पर नंगे पैर मोरो के नृत्य में शामिल हो गयी. ये अनुभव बहुत रोमांचित कर देने वाला था. घास के मैदानों में ओस इतनी अधिक थी कि मन कर रहा था कि इन घास के नरम व मुलायम बिछोनों पर लेट जाऊं और सारी ओस को अपने पर लपेट लूं. 
      उसके थोड़ी देर बाद ही झमाझम बारिश शुरू हो गयी और मै  घर के अंदर आ गयी। ठंडी हवा की बयार और गीली मिट्टी की भीनी भीनी मंद मंद सुगंध घर के दरवाजे से अंदर आने लगी, ऐसे खूबसूरत मौसम को  देखकर मैने  महान साहित्यकार चेखव के महान प्रेम की कहानी को पढना शुरू कर दिया. जिसे पढ़ने के बाद बहुत ही शानदार अनुभूति हुई. उसी समय मुझे महान कलाकार वांग गोग का वो उद्धरण याद आया जिसमे उन्होंने कहा था कि यदि तुम्हारे पास प्रकृति ,कला, कविता और प्रेम है और अगर वह तुम्हारे जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है, तो फिर क्या पर्याप्त होगा? वास्तव में प्रकृति, कला और साहित्य ही हमें दुनिया की सबसे खूबसूरत और रोमाँचक अनुभूति दे सकते है. और जिस इंसान ने अपने जीवन में इनका रसपान नहीं किया वो दुनिया का सबसे बड़ा दरिद्र है। 
    आज इस पूंजीवादी व्यवस्था में जीवन जिस तरह से जिंदा रहने की जद्दोजहद में जुट जाना मात्र रह गया है, वहां कला प्रकृति और कविता के लिए तो मनुष्य के पास समय ही नहीं रह गया है. खासतौर पर मध्यवर्गीय समाज तो आज सिर्फ पैसा कमाने की मशीन भर बनकर रह गया है. प्रेम और प्रकृति शब्द तो मानो उनके जीवन से विलुप्त ही हो गया है. सुबह घर से काम के लिए ऑफिस निकल जाना और शाम को लौट कर घर आ जाना बस यही मानो उनका जीवन रह गया है. घर उनके लिए विश्राम करने और खाना खाने का एक स्थान मात्र बन कर रह गया है. जीवन का असल स्वाद उन्होंने चखा ही नहीं. खाने की भाग दौड़ में लिपटे नीरस और उबाऊ जीवन को ही वे असल में जीवन मान बैठते हैं. वे नहीं जानते कि जीवन  की आशाओं, उमंगो और आरजूओं का नाम ही असल में जिंदगी होता है

Monday, April 27, 2020

साथ साथ जीवन के दो साल

कल साथ-साथ जीवन के 2 वर्ष पूरे हुए. और यह समय इतना शानदार रहा कि मैं कह सकती हूं कि यह मेरे अब तक के जीवन का सबसे शानदार समय रहा. पहले मुझे लगता था कि मेरे लिए बेहतर जीवन साथी कोई कम्युनिस्ट ही हो सकता है. लेकिन जीवनसाथी के रूप में मिले इस नोन कम्युनिस्ट साथी ने मेरी इस अवधारणा को बिल्कुल गलत साबित कर दिया. बल्कि कहा जाए कि मुझे उससे बेहतर साथी कोई मिल ही नहीं सकता था. धीरे-धीरे इस साथी को कम्युनिस्ट बनने के संघर्ष में शामिल कराने के लिए मेरा प्रयास जारी है और उसमें कुछ हद तक सफलता भी मिल रही है.और अपने अनुभव से मैं कह सकती हूं कि कम्युनिस्ट होने का ढोंग रचाने वालों से, समाज का एक साधारण व्यक्ति जो कि इंसानी गुणों से लैस है कहीं ज्यादा बेहतर होता है.

       असल में जीवन के असली स्वाद का पता तो मुझे इन एकमात्र जेनुइन कम्युनिस्टों के चंगुल से आजाद होने के बाद चला. और जीवन कितना खूबसूरत, कितना आनंदमय, कितना ऊर्जावान हो सकता है इसका पता मुझे इस व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद चला. इन पिछले 2 सालों में जीवन के जितने भी खूबसूरत रंग होते हैं उन सब का स्वाद मैंने चखा.मेरे वीरान जीवन में बहार लाने के तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया साथी. यह प्यार और खुशियां जीवन में हमेशा ऐसे ही बनी रहे. तुम्हारे लिए मैं यही कहना चाहूंगी कि-
तुम्हे पाके हमने जहां पा लिया है
जमीं तो जमीं आसमा पा लिया है